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भारत विभाजन पर NCERT का नया मॉड्यूल: कांग्रेस नेतृत्व पर डाली ज़िम्मेदारी, विभाजन को बताया “टाली जा सकने वाला”

नई दिल्ली: भारत के स्कूली छात्रों के लिए तैयार किए गए एनसीईआरटी (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) के नए विशेष मॉड्यूल ने देश के विभाजन को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। मॉड्यूल में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भारत का विभाजन अपरिहार्य नहीं था, बल्कि यह कुछ व्यक्तियों के निर्णयों और गलत आकलनों का परिणाम था। इसमें कांग्रेस नेतृत्व पर विशेष रूप से सवाल उठाए गए हैं कि उन्होंने “विभाजन की योजनाओं को स्वीकार किया” और “जिन्ना को कम करके आंका”, जिससे भारत एक “अभूतपूर्व मानवीय त्रासदी” का शिकार हो गया।

कांग्रेस, जिन्ना और माउंटबेटन: तीन मुख्य पात्र

एनसीईआरटी द्वारा इस अगस्त में ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के अवसर पर जारी दो मॉड्यूलों — एक मध्य स्तर और दूसरा द्वितीयक स्तर के लिए — में यह तर्क दिया गया है कि विभाजन किसी भी रूप में अपरिहार्य नहीं था। बल्कि इसे तीन प्रमुख शख्सियतों द्वारा आकार दिया गया: जिन्ना, जिन्होंने इसकी मांग की; कांग्रेस, जिन्होंने इसे स्वीकार किया; और लॉर्ड माउंटबेटन, जिन्होंने इसे लागू किया।

विभाजन: एक मानवीय त्रासदी

मॉड्यूल में विभाजन को “विश्व इतिहास में एक अद्वितीय मानवीय त्रासदी” के रूप में वर्णित किया गया है। इसमें 15 मिलियन लोगों के विस्थापन, हजारों सामूहिक हत्याओं, यौन हिंसा और उन ट्रेनों का विवरण दिया गया है जो “मारे गए लोगों की लाशों से भरी हुई” भारत-पाक सीमा पर पहुंचती थीं।

निर्णायक मोड़: ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ और जिन्ना की चेतावनी

अगस्त 1946 का ‘डायरेक्ट एक्शन डे’, जिसमें मुस्लिम लीग ने हिंसा का सहारा लिया, मॉड्यूल के अनुसार एक निर्णायक क्षण था। इसमें जिन्ना की चेतावनी, “या तो विभाजित भारत या नष्ट भारत”, को कांग्रेस के नेताओं – नेहरू और पटेल – के निर्णयों पर भारी दबाव डालने वाला बताया गया है।

लापरवाही में हुआ सत्ता हस्तांतरण

द्वितीयक मॉड्यूल विशेष रूप से इस बात पर जोर देता है कि भारतीय नेताओं को शासन, प्रशासन और सुरक्षा जैसे जटिल क्षेत्रों का अनुभव नहीं था। मॉड्यूल में कहा गया है कि “अनुभव की कमी और राजनीतिक जल्दबाज़ी” ने विभाजन को और भी अधिक भयावह बना दिया।

इसके अतिरिक्त, मॉड्यूल लॉर्ड माउंटबेटन की भूमिका को भी कटघरे में खड़ा करता है, जिनके द्वारा किया गया सत्ता हस्तांतरण एक “लापरवाही का कार्य” बताया गया है। इसमें लिखा है कि आज़ादी के बाद भी लाखों लोग यह नहीं समझ सके कि वे भारत में हैं या पाकिस्तान में।

वर्तमान चुनौतियों से भी जोड़ा गया

मॉड्यूल में विभाजन को केवल ऐतिहासिक घटना नहीं माना गया, बल्कि इसे आज की स्थायी चुनौतियों – जैसे कि कश्मीर विवाद, साम्प्रदायिक तनाव और जिहादी आतंकवाद – से सीधे जोड़ा गया है। इसमें कहा गया है कि “पाकिस्तान ने कश्मीर पर तीन युद्ध लड़े और फिर आतंकवाद को बढ़ावा देने की नीति अपनाई – ये सब विभाजन की विरासत हैं।”

मध्य स्तर के छात्रों के लिए सरल पर गंभीर पाठ

मध्य स्तर के छात्रों के लिए तैयार खंड में भी वही मूल संदेश है, हालांकि भाषा सरल रखी गई है। इसमें कहा गया है, “तीन तत्व विभाजन के लिए ज़िम्मेदार थे: जिन्ना, कांग्रेस और माउंटबेटन।” यह खंड भी छात्रों को यह समझाने की कोशिश करता है कि इतिहास में लिए गए कुछ निर्णय कैसे आने वाली पीढ़ियों पर गहरा असर डाल सकते हैं।

मॉड्यूल का उद्देश्य: चेतावनी और जागरूकता

अंततः, मॉड्यूल एक चेतावनी के रूप में समाप्त होता है: “शासकों की अदूरदर्शिता राष्ट्रीय आपदा बन सकती है। शांति प्राप्त करने के लिए हिंसा को छूट देने से हिंसक समूहों की भूख बढ़ती है।” यह संदेश वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक सीख के रूप में प्रस्तुत किया गया है।


विश्लेषण:
एनसीईआरटी के इस मॉड्यूल ने न केवल ऐतिहासिक तथ्यों को दोबारा जांचने का मौका दिया है, बल्कि विभाजन के पीछे की जटिलताओं पर एक नया दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किया है। हालांकि यह शिक्षाविदों और राजनीतिक हलकों में बहस को जन्म दे सकता है, परंतु छात्रों के लिए यह एक अवसर है कि वे अपने इतिहास को और गहराई से समझें — न केवल घटनाओं के क्रम में, बल्कि उनके पीछे छिपी वजहों और प्रभावों के रूप में भी।

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