श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर एक बार फिर भीषण प्राकृतिक आपदा से दहल उठा है। किश्तवाड़ जिले में 14 अगस्त को बादल फटने की भयावह घटना में कम से कम 60 लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक लोग घायल हो गए। इस त्रासदी ने एक बार फिर इस संवेदनशील पहाड़ी क्षेत्र की गंभीर मौसमीय चुनौतियों की ओर ध्यान आकर्षित किया है।
2010 से 2022 के बीच 2,863 मौसमीय आपदाएं, 552 मौतें
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की त्रैमासिक पत्रिका ‘मौसम’ में प्रकाशित एक विस्तृत अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2010 से 2022 के बीच जम्मू-कश्मीर में 2,863 चरम मौसमीय घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 552 लोगों की जान गई। इनमें भारी बारिश, अचानक बाढ़, बिजली गिरना, आंधी, ओलावृष्टि और भारी बर्फबारी शामिल हैं।
बर्फबारी: सबसे घातक, बिजली गिरना: सबसे आम
अध्ययन के मुताबिक, बर्फबारी के कारण मृत्यु दर सबसे अधिक रही है। शोध के अनुसार, “भारी बर्फबारी की प्रत्येक घटना में औसतन 4.33 लोगों की मौत हुई,” जबकि बिजली गिरने की 1,942 घटनाएं, भारी बारिश की 409 घटनाएं और अचानक बाढ़ की 168 घटनाएं दर्ज की गईं।
क्षेत्रवार स्थिति: कुपवाड़ा से किश्तवाड़ तक तबाही
जिलेवार विश्लेषण में पाया गया कि:
कुपवाड़ा, बांदीपोरा, बारामूला और गंदेरबल में बर्फबारी से सबसे ज़्यादा मौतें हुईं।
किश्तवाड़, अनंतनाग, गंदेरबल और डोडा में अचानक बाढ़ से सबसे ज़्यादा जानें गईं।
विशेष रूप से किश्तवाड़ ऐसा क्षेत्र रहा है जहां मौसमीय आपदाएं बार-बार कहर बनकर टूटी हैं, और 14 अगस्त की घटना ने फिर से इस जिले को सुर्खियों में ला दिया।
182 मौतें सिर्फ 42 भारी बर्फबारी की घटनाओं में
अध्ययन में बताया गया है कि रिपोर्टिंग अवधि में केवल 42 भारी बर्फबारी की घटनाएं (एक दिन में 30 सेमी से अधिक बर्फ गिरने की स्थिति) दर्ज की गईं, लेकिन इनसे 182 लोगों की जान चली गई। इसके मुक़ाबले:
अचानक बाढ़ से 119 मौतें,
भारी वर्षा से 111 मौतें,
और भूस्खलन से 71 मौतें हुईं।
आईएमडी के आंकड़ों पर आधारित है विश्लेषण
इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने जम्मू-कश्मीर स्थित आईएमडी के 10 केंद्रों से प्राप्त मौसम आंकड़ों और आधिकारिक आपदा प्रबंधन रिकॉर्ड्स का विश्लेषण किया। इसमें विभिन्न मौसमीय घटनाओं की आवृत्ति, तीव्रता और उनके कारण हुई मौतों का तुलनात्मक अध्ययन शामिल था।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
जलवायु परिवर्तन और मानव गतिविधियों के प्रभाव को भी इन आपदाओं के पीछे एक बड़ी वजह माना जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि घाटी में मौसमीय अस्थिरता बढ़ रही है और तत्काल और दीर्घकालिक नीतिगत हस्तक्षेपों की आवश्यकता है।
निष्कर्ष: चेतावनी भरा संदेश
जम्मू-कश्मीर में बढ़ती मौसमीय घटनाएं यह स्पष्ट संकेत हैं कि यह क्षेत्र गंभीर पर्यावरणीय संकट की ओर बढ़ रहा है। किश्तवाड़ की ताज़ा त्रासदी और अध्ययन के आंकड़े मिलकर इस बात की चेतावनी देते हैं कि यदि जलवायु और आपदा प्रबंधन को लेकर ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में यह संकट और गहरा सकता है।