श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर में आतंकियों ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया है। अब वे गांवों और कस्बों के घरों में छिपने के बजाय, घने जंगलों और ऊंची पहाड़ियों के बीच भूमिगत बंकर बना रहे हैं। अधिकारियों के अनुसार, यह बदलाव स्थानीय स्तर पर घटते समर्थन के कारण आया है और इससे सुरक्षा बलों के सामने नई चुनौती खड़ी हो गई है।
इस नई रणनीति का खुलासा पिछले सप्ताह कुलगाम जिले के ऊंचाई वाले इलाकों में एक मुठभेड़ के दौरान हुआ, जहां दो आतंकवादी मारे गए। ऑपरेशन के दौरान सुरक्षाबलों को एक गुप्त खाई मिली, जिसमें राशन, छोटे गैस स्टोव, प्रेशर कुकर, हथियार और गोला-बारूद रखा गया था।
एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इस तरह के बंकर कुलगाम और शोपियां जिलों के अलावा जम्मू क्षेत्र के पीर पंजाल के दक्षिणी हिस्सों में तेजी से सामने आ रहे हैं। घने जंगलों का कवर इन आतंकियों को छिपने के लिए आदर्श स्थल प्रदान करता है।
पुरानी रणनीतियों की वापसी
सेना के उत्तरी कमान के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डी एस हुड्डा ने इस प्रवृत्ति की तुलना 1990 और 2000 के दशक की रणनीतियों से की है। उन्होंने चेताया कि अब पहले की तरह स्थानीय खुफिया सूचना का अभाव है, जो पहले आतंकवाद विरोधी अभियानों में बड़ी भूमिका निभाती थी।
उन्होंने कहा, “ये हाई-एल्टीट्यूड बंकर उस समय की याद दिलाते हैं जब आतंकियों ने सुरक्षाबलों से बचने के लिए ऐसे ही रास्ते अपनाए थे। हालांकि, सेना इस नई चुनौती का समाधान निकालने में सक्षम है।”
पूर्व डीजीपी (पुडुचेरी) बी. श्रीनिवास, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर पुलिस में तीन दशक बिताए, ने भी माना कि अब आतंकी गांवों में शरण नहीं ले पा रहे हैं और मजबूर होकर जंगलों में बंकर बना रहे हैं।
तकनीक से जवाब देने की तैयारी
सुरक्षा एजेंसियां अब अत्याधुनिक तकनीक का सहारा लेने की योजना बना रही हैं। ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) युक्त ड्रोन और सीस्मिक सेंसर अब आतंकवाद विरोधी अभियानों में तैनात किए जाएंगे ताकि भूमिगत बंकरों का पता लगाया जा सके।
ड्रोन inaccessible क्षेत्रों तक पहुंच सकते हैं, जबकि GPR और सीस्मिक सेंसर जमीन के नीचे की गतिविधियों और खाली स्थानों की पहचान कर सकते हैं।
पहले भी मिल चुके हैं ऐसे बंकर
सुरक्षा अधिकारियों ने बताया कि इससे पहले भी कई छिपे हुए बंकर मिल चुके हैं। एक उदाहरण रंबी आरा नदी का है, जहां एक लोहे का बंकर बनाया गया था और उसमें प्रवेश के लिए एक खाली तेल ड्रम का इस्तेमाल होता था।
एक अन्य मामला बांडपोह का है, जहां सेब के बागानों के बीच एक भूमिगत कमरा मिला। वहीं शोपियां के लबिपोरा इलाके में एक लोहे के बक्से को नदी किनारे दबा कर रखा गया था और अंदर छिपे आतंकी सांस लेने के लिए एक पाइप का सहारा ले रहे थे।
निष्कर्ष
स्थानीय समर्थन के अभाव और लगातार जारी सैन्य अभियानों के चलते आतंकवादी अब एक नई रणनीति अपना रहे हैं। हालांकि यह उनकी कमजोरी को दर्शाता है, लेकिन यह सुरक्षा बलों के लिए एक नई चुनौती भी है। तकनीक और नई रणनीति के सहारे, सुरक्षा एजेंसियां इन छिपे हुए खतरों को बेनकाब करने की तैयारी में जुट गई हैं।