नई दिल्ली: भारत और अमेरिका के बीच संबंध इन दिनों कठिन दौर से गुजर रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में एक तरफ जहां दोस्ती की बातें हो रही हैं, वहीं दूसरी तरफ उनके प्रशासन के फैसले भारत के लिए लगातार परेशानियों का सबब बनते जा रहे हैं। हाल ही में अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए टैरिफ और अन्य नीतिगत निर्णयों से दोनों देशों के रिश्तों में खटास बढ़ती दिख रही है।
दोस्ती की बात, लेकिन फैसलों में कड़वाहट
राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल ही में अपने सोशल मीडिया पोस्ट में भारत को ‘करीबी’ बताया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘मित्र’ करार दिया। उन्होंने दावा किया कि भारत और अमेरिका के रिश्ते उनके नेतृत्व में मजबूत हुए हैं। लेकिन उनकी नीतियां और फैसले इस कथन से मेल नहीं खाते। ट्रंप प्रशासन ने भारत के खिलाफ करीब आधा दर्जन ऐसे फैसले लिए हैं, जिनका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष असर भारत की अर्थव्यवस्था और विदेश नीति पर पड़ा है।
ट्रंप की “अमेरिका को फिर से महान बनाओ” (MAGA) नीति के तहत ऐसे कदम उठाए गए जिनसे वैश्विक व्यापार व्यवस्था में उथल-पुथल मच गई। टैरिफ बढ़ाने से लेकर रूस-यूक्रेन युद्ध को भारत से जोड़ने तक, ट्रंप का रुख भारत के लिए कठिनाइयाँ लेकर आया।
1. एच-1बी वीजा फीस में भारी बढ़ोतरी
ट्रंप प्रशासन ने एच-1बी वीजा के लिए फीस बढ़ाकर भारतीय पेशेवरों को बड़ा झटका दिया है। अब इस वीजा की सालाना फीस एक लाख डॉलर (लगभग 89 लाख रुपये) कर दी गई है। इससे भारत के आईटी सेक्टर पर बड़ा असर पड़ सकता है, जो बड़ी संख्या में पेशेवरों को अमेरिका भेजता रहा है। यह फैसला भारतीय युवाओं और पेशेवरों की उम्मीदों पर पानी फेरता नजर आ रहा है।
2. चाबहार बंदरगाह पर अमेरिका ने वापस ली छूट
ईरान के चाबहार बंदरगाह पर भारत द्वारा किए जा रहे रणनीतिक निवेश को भी ट्रंप प्रशासन ने झटका दिया। अमेरिका ने इस परियोजना को दी गई प्रतिबंध छूट को रद्द कर दिया है, जो 29 सितंबर 2025 से प्रभावी होगी। चाबहार बंदरगाह भारत के लिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच का अहम जरिया था। इस कदम से न केवल भारत के भू-राजनीतिक हित प्रभावित होंगे बल्कि अरबों डॉलर का निवेश भी संकट में आ गया है।
3. भारत पर लगाया गया 50% टैरिफ
अगस्त में ट्रंप प्रशासन ने भारत से आयातित उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया। यह निर्णय मुख्य रूप से रूस से तेल खरीद जारी रखने के विरोध में लिया गया। ट्रंप ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत को रूस से तेल खरीदना बंद करना चाहिए, और ऐसा न करने पर यह दंडात्मक टैरिफ लागू किया गया। व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय केवल भारत ही नहीं, वैश्विक व्यापार के लिए नुकसानदायक है।
4. भारतीय प्रवासियों पर सख्ती, डिपोर्टेशन का खतरा
ट्रंप प्रशासन ने अमेरिका में रह रहे अवैध भारतीय प्रवासियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, करीब 18,000 भारतीयों की पहचान की गई है जिन्हें अमेरिका से वापस भेजा जाएगा। इस कार्रवाई को लेकर मानवाधिकार संगठनों ने सवाल उठाए हैं और इसे अमानवीय बताया है।
5. भारत को ‘ड्रग्स उत्पादक देशों’ की सूची में शामिल किया गया
ट्रंप प्रशासन ने भारत को 23 देशों की उस सूची में शामिल किया है जिन्हें अमेरिका में अवैध ड्रग्स की आपूर्ति और उत्पादन के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। इस सूची में चीन और पाकिस्तान के साथ भारत का नाम शामिल किया गया है। यह सूची ऐसे समय में जारी की गई है जब वैश्विक स्तर पर अमेरिका की व्यापार नीतियों पर पहले ही सवाल उठ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को धक्का पहुंचा सकता है।
अमेरिका की दोहरी नीति?
ट्रंप प्रशासन की नीतियों की आलोचना केवल भारत में ही नहीं, बल्कि अमेरिका के अंदर भी हो रही है। विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका रूस से सबसे अधिक तेल खरीदने वाले चीन के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं करता, लेकिन भारत पर दबाव बनाता है। इसके अलावा, यूक्रेन पर हमले के लिए सीधे जिम्मेदार रूस के खिलाफ अपेक्षाकृत नरम रवैया और भारत पर कठोर फैसले अमेरिका की दोहरी नीति को उजागर करते हैं।
यूरोपीय संघ से 100% प्रतिबंध लगाने का अनुरोध
सूत्रों के मुताबिक, ट्रंप ने यूरोपीय संघ से भारत और चीन पर 100 फीसदी प्रतिबंध लगाने का भी अनुरोध किया है। यह अनुरोध रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस पर दबाव बनाने के लिए किया गया है। अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने भी भारत से रूसी तेल खरीद बंद करने की बात कही है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और गहराने की आशंका है।
निष्कर्ष:
राष्ट्रपति ट्रंप की भारत के प्रति बयानबाज़ी भले ही दोस्ताना हो, लेकिन उनके प्रशासन के फैसले भारत के लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं। वीजा नीति हो, व्यापार टैरिफ हो या विदेश नीति, हर मोर्चे पर ट्रंप प्रशासन ने भारत को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत इस स्थिति का जवाब किस तरह देता है और दोनों देशों के संबंध किस दिशा में बढ़ते हैं।