नई दिल्ली — सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों पर आपराधिक मामले दर्ज करने की प्रवृत्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पत्रकारों द्वारा सरकार की नीतियों या कार्यशैली की आलोचना करना अपराध नहीं है, और ऐसे मामलों से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात होता है।
यह टिप्पणी उस समय आई जब उत्तर प्रदेश के पत्रकार अभिषेक उपाध्याय ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अभिषेक ने यूपी सरकार में जातिगत आधार पर नियुक्तियों को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसके बाद उनके खिलाफ यूपी सहित अन्य स्थानों पर भी आपराधिक मामले दर्ज किए गए।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि केवल आलोचनात्मक रिपोर्ट लिखने के लिए पत्रकारों पर आपराधिक मुकदमे नहीं चलाए जा सकते। अदालत ने कहा, “लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान होना चाहिए।” साथ ही यह भी कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) पत्रकारों को अपने विचार प्रकट करने का मौलिक अधिकार देता है।
सुप्रीम कोर्ट ने अभिषेक उपाध्याय को अंतरिम राहत देते हुए उनके खिलाफ किसी भी तरह की जबरन कार्रवाई पर रोक लगा दी है। साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 5 नवंबर को होगी।
यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के रूप में देखा जा रहा है।